बिराज बहू - 2

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लगभग डेढ़ माह बाद... नीलाम्बर का बुखार आज सुबह उतर गया। बिराज ने उसके कपड़े बदल दिए। फर्श पर बिस्तर बिछा दिया। नीलाम्बर लेटा हुआ खिड़की की राह एक नारियल के पेड़ को देख रहा था। हरिमती उसे पंखा झल रही थी। कुछ देर बाद बिराज नहा-धोकर आई। उसके भीगे बाल पीठ पर छितराए हुए थे। उसके आते ही कमरे में एक दीप्ति-सी हुई। नीलाम्बर ने चौंककर कहा- “यह क्या?”