विद्रोहिणी - 10

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कुछ दिनों से श्यामा पर ताने तो मारे ही जा रहे थे फिर ऐक दिन अचानक उनके बंद दरवाजे पर कभी पत्थर तो कभी गोबर फेंके जाने लगा । मोहन व श्यामा बाहर निकलते तो कोई दिखाई नहीं देता । कुछ बदमाश लड़के हंसते हुऐ दिखाई देते । हद तो तब हो गई जब एक दिन प्रातः थोडा अँधेरा था तो उनके दरवाजे पर कोई मल मूत्र फेंक गया I किसी को रंगे हाथों पकड़ना मुश्किल था । तब ऐक दिन श्यामा तेजी से भनभनाती हुई नजदीक के थाने जा पहुंची। उसने थाने पर रिपोर्ट लिखाना चाहा किन्तु उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई।