इस यंत्र पर मेरी धड़कनों को घटते बढ़ते देख डॉक्टर मेरे जीवन का अनुमान लगा रहे थे।पर उन्हें क्या पता मुझमें जब जीने कि चाह ही नहीं बची तो इन सब उपकर्मों से क्या लाभ। अब तो वह घड़ी धीरे धीरे पास अा रही है। जो शाश्वत है किन्तु प्रत्येक मनुष्य उससे घबराता है। परंतु मैं तो इसका वर्षों से इंतजार कर रहा हूं। लेकिन हमारे चाहने से क्या! जितनी सांसे परमात्मा ने हमारे जीवन में लिख दी उससे पहले तो मृत्यु भी उन्हें नहीं छीन सकती और मैं इतना कायर भी नहीं कि सांसारिक कर्तव्यों से विमुख हो असमय