स्टार्ट अप

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मुझे उसके हाव - भाव वैसे नहीं लगे जैसा मैं सोच कर गया था और उसका कमरा भी कोठे वाली जैसा नहीं। कमरे में टीवी, फ्रिज और एसी भी। जिस आत्मविश्वास से वो कांच के गिलास में पानी करते पर रखकर लाई वो और भी चौंकाने वाला था। "समाजसेवी, पीएचडी या पत्रकार?" उसका प्रश्न सुन भौंचक रह गया। "उत्सुक इंसान....पर आपको कैसे...?" "बाबू..इतने नार्मल इंसान देखे हैं कि एब्नार्मल की पहचान आसान हो गई है।" वो मुस्कुराते हुए बोली। "मैं एब्नार्मल..!!" "हां...हां... बाबू, तुम्हारे चेहरे की शालीनता और कुलीनता तुम्हें असामान्य बनाती है। यहां ऐसे लोग नहीं आते। मैं यहां