मुख़बिर - 10

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सौ, पचास, दस और पांच-पांच के नांटों की अलग-अलग गड्डी बनाके मैंने और लल्ला ने रूपये गिनना शुरू कर दिया । जब तक सब्जी बनी, तब तक नोट गिने जा चुके थे । मैं बोला-‘‘ मुखिया, जे नोट तो पन्द्रह हजार चार सौ अस्सी है,।‘‘ ‘‘मुखिया पुरी काहे में काड़ेंगे ?‘‘ ‘‘मादरचो…, हिना का कडा़ई दीख रही है तो खों । जा अपनी मइयो की …. में काढ़ ले ! जा भगोनी नाय दीख रही तोखेां ?‘‘