चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख - 4 - अंतिम भाग

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चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख (4) जब चार पैसे आने लगे तो सास को बहू भी याद आई | वह भी साल में एक दो चक्कर लगा ही लेती | उनको गलती का अहसास होने लगा था | पर कभी सीधे तो कहा नहीं लेकिन उनकी बातों से झलक ही जाता की बड़ी साध से लाई बहू की सेवा से वह संतुष्ट नहीं हैं, रूपा ने कभी न उन्हें आने को कहा न ही आने से रोका ही बल्कि उनकी बीमारी में अपने पास रख कर उनकी दवा भी करवाई | माँ की बीमारी के बहाने कुंवर भी आये