निश्छल आत्मा की प्रेम पिपासा - 6

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[निष्कम्प दीपक जलता रहा रात भर.... ] दूसरे दिन का दफ्तर का वक़्त मुश्किल से कटा। इतने-इतने प्रश्न, शंकाएं, जिज्ञासाएँ कि बस, राम कहिये ! मैं लगातार यही सोचता रहा कि क्या आज रात मेरी माता से सचमुच बातें हो सकेंगी? क्या वह औघड़ इतना सक्षम है ? माता से बातें हो सकेंगी, यह विचार ही रोमांचकारी था। माता को गुज़रे सात वर्ष हो चुके थे--४ दिसंबर १९६८ को ब्रह्ममुहूर्त्त में, किसी से बिना एक शब्द कहे, उन्होंने शरीर त्याग दिया था और पूरा परिवार अवसन्न रह गया था। बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में उच्च-पदस्थ मेरी माँ पूर्णतः स्वस्थ-प्रकृतिस्थ