कौन दिलों की जाने! - 10

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कौन दिलों की जाने! दस 24 जनवरी दोपहर में मोबाइल की घंटी बजी। रानी ने जब मोबाइल उठाया तो मकर संक्रान्ति के बाद आज आलोक का नाम देखकर उसके हृदय में खुशी की हिलोरें उठने लगीं। उसका मुख प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो उठा। ‘हैलो' के उत्तर में उधर से आवाज़़ आई — ‘रानी, कहीं डिस्टर्ब तो नहीं कर दिया, क्या कर रही थी?' ‘तुम्हारे फोन आने से डिस्टर्ब नहीं, बल्कि प्रसन्न होती हूँ। कर कुछ भी नहीं रही थी, बस लेटे—लेटे मन्टो की कहानियाँ पढ़ रही थी।' ‘वैरी गुड, कैसी लग रही हैं मन्टो की कहानियाँ, कोई और किताब भी