रिश्ते - ज़रूरत या ईश्वरीय देन (भाग-२)

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हमने भाग-१ में देखा कि रिश्तों का जन्म कैसे हुआ और किन परिस्थितियों में हुआ?अब हम रिश्तों के अलग आयाम को देखने का प्रयास करेंगे।आज कल के रिश्ते बस नाममात्र के ही प्रतीक रहे है ।हर वो रिश्ता चाहे फिर ख़ून से जुड़ा हो या फिर विश्वास से या फिर प्रेम से बस दिखावा मात्र रह गये है । हमने समझने की कोशिश की कि रिश्ता कैसे जन्मा होगा? अब इसका धार्मिक पक्ष समझने की कोशिश करते है - जब ईश्वर ने इस धरती का सृजन किया तो इसकी सबसे अदभुत सर्जन मानव था ।ईश्वर ने मानव को समझ जिसे हम