भाग्य का खेल

  • 7.2k
  • 1.5k

कहानी भाग्य का खेल सुधा भार्गव "ओ आसरे –-रामआसरे -----।'' "ओह माँ !तुम्हारी आवाज क्या कमरे से रसोई में पहुँच सकती है?मुझे ही रामआसरे समझकर कोई काम बता दो। कुछ दिनों को यहाँ आती हूँ ताकि तुम्हारा कोई काम कर सकूँ। कुछ तो मुझे सेवा का मौका दो। ''. "ओह चुन्नी ,तू न जाने क्या बक-बक कर रही है। अरे यह नौकर मेरे लिए ही रखा गया है। विक्की की सख्त हिदायत है कि वह पहले मेरा काम करे पर मेमसाहब के काम से उसे फुर्सत कहाँ?नौकर भी समझता है,मैं बेकार ,लाचार –बस एक बोझ हूँ। उसे बुला –ना --।''