विकल्प

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विकल्प सुधा ओम ढींगरा वह कब, कहाँ पहुँच जाती है, किसी को पता नहीं चलता। उस दिन भी वह दबे पाँव वहाँ चली गई थी...... सामने वाला दृश्य देखने के साथ ही उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा और उसकी सोचने-समझने की शक्ति साथ छोड़ गई थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ; उसकी आँखों ने जो देखा, क्या वह सच था? कमरे के भीतर जाने से पहले ही वह पलट आई। असहज हो गई थी वह। उसे भीतर कुछ कटोचने लगा। ऐसा लगा जैसे टाँगें चलना नहीं चाह रहीं। उसने स्वयं को वहाँ से धकेला। अच्छा हुआ जब