सात कंकड़

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सात कंकड़ कैलाश बनवासी भरी दोपहरी थी. चुनाव कार्य में लगी बस हम चार लोगों को हमारे मतदान-केंद्र वाले गाँव के चौक में उतारकर चली गयी—भरभराती, अपने पीछे धुल का गहरा गुबार छोडती हुई. अब हम पिछले चार घंटे के सफ़र के दौरान कपड़ों में जम आई धूल-गर्द झाड़ रहे थे. शहर से अब हम 72 किलोमीटर दूर इस गाँव में हैं. हम सबमें सबसे ज्यादा सफाई पसंद –जो उसके शर्ट-पेंट की क्रीज़ और कलर से जाहिर था- क्लर्क नायक बड़बड़ाया , यार, यह तो यार वाकई देहात है! मुझे आसपास एक दुकान या पानठेला भी नहीं दिखा. जो थे,