निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 25

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'ज़मीं पर कभी उतरो तो कोई बात बने ...!'अगली वार्ता में मेरी इस जिज्ञासा पर कि तुम्हें कैसे ज्ञात हुआ कि वह मज़दूर अपने गाँव चला गया था और वहीं उसने यथानिश्चय गंगा के किनारे पूजन किया था, चालीस दुकानवाली आत्मा ने मुझसे कहा था--"हमारी गति का तुम्हें अनुमान नहीं है, मन की गति से भी क्षिप्र हैं हम! हम चाहें तो क्षण-भर में समुद्र लांघ जाएँ। तुम्हारे पलक झपकाने भर के अवकाश में विशाल पहाड़ की ऊँचाई नाप लें। उस मज़दूर का गाँव तो मेरे लिए एक हाथ की दूरी पर था। इच्छा मात्र से मैं पहुँच गयी थी