कौन दिलों की जाने! - 29

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कौन दिलों की जाने! उनतीस अगले दिन सुबह रानी जब नित्यकर्म से निवृत होकर अपने कमरे से बाहर निकली तो छः बज चुके थे। रमेश के बेडरूम में झाँकाा। वह भी जगा हुआ था, लेकिन उसने अभी बेड नहीं छोड़ा था। रानी अन्दर आई। ‘राम—राम' की और कहा — ‘अभी कुछ देर पहले विनय का फोन आया था। कह रहा था कि माँ की तबीयत ढीली है। आप कहें तो मैं माँ का पता ले आऊँ?' रात की बातचीत के पश्चात्‌ रमेश लगभग सहज था, पहले की तरह उखड़ा—उखड़ा नहीं था। कहा — ‘जा आओ, कितने दिन का प्रोग्राम है?