योगिनी - 12

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योगिनी 12 रात्रि के दो पहर बीत चुके हैं। मंदिर के अंदर एवं बाहर अंधकारमय शांति छाई हुई है- निशिदिवस बहने वाली बयार भी आज शांत है, बस साल के वृक्ष के तने की खोह में बसेरा बनाये हुए उल्ूाक की ‘घू.... घू.....’ की आवाज़ यदाकदा इस नीरवता को भंग कर देती है। मीता भी निश्चिंतता से गहन निद्रा में सो रही हे। इसके विपरीत उसके बगल में लेटे योगी के मन में एक झंझावात उठा हुआ है। बेचैनी के सहन की सीमा के पार हो जाने पर योगी निश्शब्द पलंग से उठता है और कमरे से बाहर आकर हाल