योगिनी - 19 - अंतिम भाग

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योगिनी 19 तूफ़ान के रुकने पर घनघोर अंधकार छा चुका था. जुगुनू की भांति यत्र-तत्र टिमटिमाते तारे ही पृथ्वी को केवल इतना प्रकाश प्रदान कर रहे थे कि मीरा अपनी परिस्थिति की भयावहता का वास्तविक आकलन कर सके. हिम-सलिला के मार्ग, जिससे वह आई थी, पर वापस जाना मृत्यु को सद्यः आमंत्रण देने के समान था, क्योंकि नई गिरी बर्फ़ उसे कहीं भी हिम-समाहित कर सकती थी. किसी दूसरे मार्ग की खोज और उसकी निरापदता की आश्वस्ति भी सम्भव नहीं प्रतीत हो रही थी. मीरा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई थी और समझ नहीं पा रही थी कि इस बर्फ़ के बियाबान