एक थी रतना आज भी मुझे अच्छी तरह याद है वो समय था दुर्गापूजा की अष्टमी का । जब रतना मेरी जिंदगी में आई थी । यही कोई शाम के छह- सात बजे का समय था, अंधेरा हो गया था । यूँ भी असम में जाड़े के दिनों में अंधेरा शाम के पांच बजे ही हो जाता है । उसी समय लगभग चार फुट की, रंग काफी दबा हुआ, पैरों तक लम्बा कुर्ता पहने, करीब 35-40 किलो वजन की एक स्त्री सीढ़ियां चढ़कर मेरे दरवाजे तक आई और मुझे देखकर हाथ जोड़कर बोली " दीदी अमा के काम लागे, आमर