कुबेर - 6

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कुबेर डॉ. हंसा दीप 6 गुप्ता जी के ढाबे पर एक बेरंग चिट्ठी की तरह लौट आया वह। सेठजी को बताया माँ-बाबू के बारे में तो वे भी उदास हुए। धन्नू का उतरा चेहरा उन्हें सब कुछ बता रहा था। क्या कहते वे, एक बच्चे ने अपने माता-पिता को खो दिया। ऐसा बच्चा जो इतनी मेहनत करता है, सबका ख़्याल रखता है। उसके सिर पर प्यार से हाथ रख कर बोले - “बेटा धन्नू, तुम यहीं रहो अब।” “कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें।” “तुम होते हो तो मुझे यहाँ की कोई चिन्ता नहीं होती।” “माँ की याद आए