अपने होने का एक दिन

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अपने होने का एक दिन आँख खुलने के बाद भी देर तक बिस्तर पर पड़ी रही थी। आज उठने की कोई जल्दी नहीं। रविवार है। घर में भी कोई नहीं। मनोज कल ऑफिस के काम से बाहर गए हैं। शाम तक लौटने की बात है। बच्चे स्कूल पिकनिक में। सुबह मुंह अंधेरे निकल कर गए हैं। महरी भी छुट्टी पर। दीवार से दीवार तक खिंचे खादी सिल्क के भारी पर्दे के पीछे से धूप की कई पतली, उजली लकीरें दिख रही हैं, हल्के अंधकार से भरे बिस्तर पर यहा-वहाँ चमकीली तितलियाँ-सी टंकी हैं। पूरे कमरे में एक तांबई उजाला है।