इमाम साहब

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इमाम साहब अज़ान का वक़्त तंग हो रहा था। आँतें कुल हो अल्लाह पढ़ रही थीं मगर खाने का दूर-दूर पता नहीं था। शकीलउद्दीन बेचैनी से टहल रहे थे। ”लगता है आज फि़र भूखा रहना िक़स्मत में लिखा है,“ कहते हुए वह बाहर निकले।”ए इमाम साहब ! ज़रा ठहरो, खाना तुम्हारे लिए ही ला रही हूँ,“ बड़े ठस्से से अधेड़ बुलाक़न ने कहा और खाने की सेनी कंधे से उतारी।”बर्तन बाद में ले जाना,“ कहते हुए शकीलउद्दीन ने झटपट खाना मय सेनी के टीन के बक्स में रखा और बड़ी बी के जवाब का इंतज़ार किए बिना चप्पल चटखाते चल