गूँगा आसमान

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गूँगा आसमान प़फ़रशीद ने कूरे पर तिरयाक़ का टुकड़ा लगा, लंबा कश खींचा। दरवाज़े पर मेहरअंगीज़ के हाथों की थाप पड़ी, मगर प़फ़रशीद के कान पर जू न रेंगी। वह उसी तरह लंबे-लंबे कश भरता रहा। उसके लिए नशा करना बहुत ज़रूरी था। यह मेहरअंगीज़ क्या जाने? माहपारा भी नहीं समझ सकती है और दिलाराम और शबनूर तो अभी बच्चियाँ थीं। फ़ूली आँखों से प़फ़रशीद जब हमाम से बाहर निकला तो दस्तरख़ान पर बैठी चारों औरतों ने उसे इस तरह देखा जैसे कहना चाह रही हों, हमारे रहते इसे तिरयाक की लत क्यों लग गई?फ्खाना निकालूँ?य् मेहअंगीज़ ने पति की