कुबेर - 18

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कुबेर डॉ. हंसा दीप 18 अपराध के बीज तो इतने ताक़तवर होते हैं कि वे कहीं न कहीं से अपनी उर्वरक शक्ति ढूँढ ही लेते और बढ़ती उम्र के हर मोड़ पर उनका आकार भी बढ़ता जाता। तब समाज को एक ऐसा अपराधी मिलता जो पूरे कौशल के साथ अपने काम को अंजाम देता। नि:संदेह तब धन्नू उसी मोड़ पर खड़ा था जहाँ नियति उसे किसी न किसी रूप में ढालने का विचार कर चुकी थी। बुराइयाँ तो सामान्यत: हर क़दम पर बिछी होती हैं, कभी भी अपने शिकंजे में दबोच लेती हैं परन्तु धन्नू ने ढाबे का रास्ता पकड़ा