एक निकाह ऐसा भी

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एक निकाह ऐसा भी ‘‘रूक जाईए...रूक जाईए.........एैसे नहीं होगा निकाह...‘‘ -अचानक पीछे से आती आवाज ने पण्डाल में बैठे सभी लोगों को चौंका दिया। खुद क़ाजी जी को भी। ये आवाज दुल्हन के पिता इक़राम की थी। सभी भौंचक से घूम कर उन्हें देखने लगे। इक़राम ने आगे बढ़ते हुए कहा- ‘‘हमारे पास अपना क़ाजी है, हम निकाह उससे पढ़वाएंगे‘‘ -अभी निकाह की रस्म शुरू होने ही जा रही थी। पण्डाल में दो तख्ते जोड़ कर एक स्टेजनुमा बनाया गया था जिस पर दूल्हा सहित कुछ खास बाराती बैठे थे। शेष सारे नीचे बिछी कालीन और यहाँ-वहाँ पड़ी कुर्सियों पर