होने से न होने तक - 17

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होने से न होने तक 17. मानसी जी कभी भी, किसी भी समय मेरे घर आ जातीं है और घंटों हम दोनो की बातें होती रहतीं हैं। कुछ अजब तरीके से उन्हांने मुझे अपने संरक्षण के साए में समेट लिया है। वे मेरा ख़्याल करतीं और छोटी बड़ी बातों में मुझे सुझाव ही नहीं निदेश और आदेश भी देती रहतीं हैं। मैंने भी उनका बड़प्पन सहज ही स्वीकार कर लिया था। मीनाक्षी और केतकी उनकी इस बात पर देर तक बड़बड़ाती रहतीं। पर फिर भी अन्जाने ही मानसी जी भी हमारी अंतरग मंडली में शामिल होने लग गयी थीं। संभवतः