होने से न होने तक - 18

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होने से न होने तक 18. कौशल्या दीदी उठ कर खड़ी हो गयी थीं और खाना शुरू कराने के लिए सबकी प्लेटों में परोसने लगी थीं। सब लोग अपनी अपनी बातें कहने लगे थे। थोड़ी ही देर में अलग अलग अनुभवों से गुज़रते हुए वार्ताक्रम सहज होने लग गया था। शुरू में जब मैं नई नई कालेज आयी थी तब मुझ को अजीब लगा करता था कि ये सब ऐसे कैसे अपने परिवार की, अपने संबधों और समस्याओं की बातें आपस में एक दूसरे के सामने कर लेते हैं...एक दूसरे से अपना दुख सुख मान सम्मान सब बॉट लेते हैं।