शायद जोशी

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शायद जोशी (कहानी - पंकज सुबीर) वह मोटा सा आदमी आज फिर सामने बैठा है। इसका नाम शायद जोशी है। जोशी शायद प्रकाश या विकास जैसा कोई जोशी। सामने बैठा है मतलब उसके सामने टेबल के उस तरफ रखी हुई दो कुर्सियों में से एक पर। दूसरी कुर्सी ख़ाली पड़ी है। ये शायद जोशी अक्सर आता है। इस शायद जोशी के पास होते हैं कई शब्द। शब्द जो अक्षरों से बनते हैं और वाक्यों को बनाते हैं। आज भी इसके पास शब्द होंगे तभी तो आया है यहां। ये शायद जोशी जब उसके सामने नही बैठा होता है तो वहां