हीरामन

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हीरामन (कहानी - पंकज सुबीर) मैना की बारात थोड़ी देर में ही ड्योढ़ी पर लग जाएगी, हवेली में चारों तरफ़ विवाह की अफ़रा-तफ़री मची हुई है। कोई इधर से बताशों का थाल उठाए जा रहा है, तो कोई उधर से हार-फूल की टोकरी उठाए चला आ रहा है। घर की महिलाऐं भी उतनी ही व्यस्त हैं। जो श्रृंगार कर चुकी हैं वे व्यस्त दिखने के लिए व्यर्थ में ही कभी इस कमरे में घुस जाती हैं, तो कभी उस कमरे में घुस जाती हैं। उनकी स्थिति तो और ज़्यादा ख़राब है, जिनका श्रृंगार अभी पूरा नहीं हो पाया है, पता