अलगाव

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अलगाव कैलाश बनवासी एकदम अप्रत्याशित था. नियुक्ति पत्र था. यू.डी.सी. पोस्ट. जिला-जबलपुर. माँ ने पोस्टमैन को पाँच रुपयेका नोट उसी पल अपनी थैली से निकलकर थमा दिया था. उस सफ़ेद कागज के काले हरफों को बार-बार पढ़ता. हर बार सब कुछ नया लगता.शुरू से अंत तक.सांस जैसे रुक जाती. भाई-बहन ख़ुशी से किलकने लगे. छोटू तो मोहल्ले में दौड़ गया खबर पहुंचाने. ओह! कैसा क्षण था वह भी ख़ुशी का.मैंने माँ-बाबूजी के पैर छू लिए. उनका चेहरा भी नयी आभा से आलोकित था.कल तक जिस पेशानी पर चिंता कि सलवटें होती थीं आज वही दमक रहा है. ये नौकरी भी