समर्पण

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कहानी समर्पण राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव, ऐयर बैग अपने कन्‍धे पर टॉंगकर स्‍टेशन से निकलते ही मैंने सोचा चार साल बाद कौशल्‍या की ससुराल जाकर उसे यह बताने कि मन में इच्‍छा जागी, ‘’मैं बैंक में क्‍लर्क के लिये चुन लिया गया हूँ।‘’ अब कोई खास महत्‍व नहीं रखता.....क्‍या कहेगी वह? लेकिन फिर भी उसे यह सुनाने के लिये बैचेन हूँ। दिल में एक ऑंधी उठी हुई है। उससे मिलने की, सब कुछ कहने सुनने की। तॉंगा तय करके उसमें बैठा कि ‘’सटाक्‍क!’’ आवाज से चौंक पड़ा। घोड़े की पींठ पर चाबुक छप गई। और