समंदर और सफेद गुलाब दूसरा दिन 1 सूर्य की हल्की-हल्की किरणें खिडक़ी से होती हुई कमरे में प्रवेश कर रही थीं। मैं जमीन पर बिस्तर लगाकर लेटा हुआ था। अब तक प्रोफैसर पांडेय और मानव जी सो रहे थे। मैं भी इसी कशमकश में पड़ा था कि उठ जाऊं या लेटा रहूं। कहीं ऐसा न हो कि मेरे उठने से इन लोगों की भी नींद खराब हो जाए। मैंने बिना सोचेे-समझे चादर मुंह पर तान ली और लेटा रहा लेकिन ज्यादा समय तक लेट नहीं पाया। लेटने से उक्ता गया तो मैंने चादर इकट्ठी की और उठ गया। लगभग ढाई