अनूठा प्रयोग

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अनूठा प्रयोग मौका था, स्कूली दिनों के अपने एक दोस्त के यहांॅ गृह-प्रवेश आयोजन में सम्मिलित होने का। बाकी आमंत्रित मेहमानों के साथ मैं भी नवनिर्मित मकान के उस हाॅलनुमा बड़े से ड्राइंग-रूम में बैठा था। मैंने ध्यान दिया तो पाया कि आसपास सोफे और कुर्सियों पर बैठे लोगों में कुछ ही मेरी जान-पहचान के थे, ज्यादातर से मैं अनजान ही था। शायद, दोस्त के दूर या नजदीक के रिश्तेदार रहे होंगे। गो कि खुद को अलग-थलग महसूस न करूंॅ, मैं भी वहांॅ उपस्थित जनों की बात-बतकहियों संग मशगूल हो गया। रचनावी कुटेव या जिज्ञासावश कह लीजिए, अपने आसपास के