हिचर-मिचर

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हिचर-मिचर इस वर्ष का आज मेरा पहला उपवास है। १६ जनवरी की इस पूर्णिमा के दिन। हर पूर्णिमा के दिन मैं उपवास रखता हूँ। माँ की स्मृति में। पिछले तिरपन वर्ष से। ३१ जनवरी, १९६१ की उस पूर्णिमा के बाद से, जिस दिन अन्ततोगत्वा वह अनहोनी आन घटी थी, जिसकी आहट मैं बचपन से सुनता आया था। उस आहट की जगह बनाई थी, मनोविशेषज्ञ डॉ. गुप्त ने जिन्हें मेरे पिता ने मेरी माँ का इलाज सौंप रखा था। तरह-तरह की आश्चर्यजनक घटनाओं को वह पूर्णिमा के साथ आन जोड़ते। कई हत्याएँ, पारिवारिक झड़पें, व्यावसायिक झगड़े, मानसिक अस्पतालों तथा इमरजेन्सी वार्डों