पापा की मुक्ति

  • 6.1k
  • 912

कहानी पापा की मुक्ति डॉ. हंसा दीप घनन-घनन फोन की घंटी बजी और जैसे घर का सब कुछ स्वाहा हो गया। हँसता-चहकता वह घर करुण क्रन्दन से भर गया। पापा को ऑफिस में हार्ट अटैक का दौरा पड़ा और उन्होंने वहीं दम तोड़ दिया। इस समय उन्हें शव-गृह में रखने की व्यवस्था की जा रही थी। मम्मी विश्वास ही नहीं कर रही थीं। चीख-चीख कर कह रही थीं- “नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता- अभी गोल्डी आएगी ड्राइव-वे में, और वे हमेशा की तरह उतर कर आएँगे।” अपनी सुनहरे रंग की कार को पापा गोल्डी कह कर ही पुकारते