होने से न होने तक - 47

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होने से न होने तक 47. सुबह जल्दी ही ऑख खुल गयी थी। कई दिन से कालेज जाने का मन ही नहीं करता। पर जाना तो है ही। वैसे कालेज तो दिनचर्या की तरह आदत का हिस्सा बन चुका है। तेइस साल हो गये हर दिन कालेज जाते हुये। इस विद्यालय की धरती पर सन् सतासी की जुलाई में पहली बार कदम रखा था। तब से कितनी बार इस विद्यालय के गेट को पार किया है उसकी कोई गिनती नहीं। पर न जाने कितने साल हो गये कि कालेज जाना भारी लगने लगा है। जबकि इतवार और छुट्ठियॉं भी तो