उर्वशी - 15

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उर्वशी ज्योत्स्ना ‘ कपिल ‘ 15 दो मिनट बाद ही उसके दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई। वह एकदम से बैठ गई। रात के साढ़े बारह बज रहे थे। वह यंत्रचालित सी उठकर दरवाजे के पास गई। फिर रुक गई, उसका हृदय कहने लगा कि खोल दे दरवाजा, और लग जाए उनके सीने से। उसके हाथ चिटखनी की ओर बढ़ गए, पर मस्तिष्क ने उसे डपट दिया। खबरदार जो दरवाजा खोला। वह पलट गई और फिर पीठ दरवाजे से लगा ली। दरवाजे पर पुनः दस्तक हुई। उसकी हथेलियाँ दरवाजे पर कस गईं। मूर्ख, खोल दे दरवाजा, इतना चाहने वाला किस्मत