ये कैसी राह - 7

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अब केशव की पोस्टिंग गांव के पास वाले शहर में हो गई। वो बहुत खुश था अपने घर आकर। इस समय उसे घर परिवार और मां की खास जरूरत भी पड़ने वाली थी। क्योंकि सुशीला मां बनने वाली थी। केशव की मां बहुत खुश थीं कि बेटे का परिवार बढ़ने वाला है। कांता बहू का खूब ध्यान रखती। मां कान्ता भी बेहद खुश थी कि बेटा पास आ गया था। रोज सुबह केशव शहर जाता ड्यूटी करता और रात में वापस घर आ जाता। जिस दिन छुट्टी होती उस दिन अपने और माधव के बच्चो के साथ समय बिताता। केशव पिता भी जीवन का आनंद जो युवा अवस्था में अभाव के कारण ना ले पाए थे अब लें रहे थे। समय पूरा होने पर सुशीला ने एक सुंदर और स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। बेटा हूबहू सुशीला की परछाईं था। वैसा ही रंग बिलकुल वैसा ही नाक नक्श। उसे देख कर कांता को थोड़ी सी निराशा हुई। वो उम्मीद लगाए थी कि केशव का बच्चा केशव के जैसा ही सुंदर होगा। पर कोई बात नही… बेटा तो था। गांव में कहते है घी का लड्डू टेढ़ा मेढ़ा भी अच्छा ही होता है। इस लिए पोते को पा कर कांता खुश थी।