किसान की बारिश...

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ये कैसी विडम्बना है ! जो सबके लिए अनाज उगाता है।दुनिया भर की क्षुधा मिटाता है। अक्सर रातों को वो ही भूंखा सो जाता है। कहने को तो वो अन्नदाता कहलाता है मगर इसी अन्न के अभाव के चलते वो कभी इतना भी मजबूर हो जाता है कि समाज के धनलोलुप और स्वार्थी तत्वों से खुद को बचाने की खातिर आत्महत्या तक कर जाता है। कुत्तों के भौंकने की भयंकर आवाजों और रात के सघन सन्नाटे को चीरती हुई सुक्खी बड़े ही बोझिल कदमों से आगे बढ़ती चली जा रही थी। सुक्खी को अचानक अतीत की न जाने कितनी स्मृतियों