जूते.

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जूते कितना वक्त गुजरा होगा ! अंदाज से लगभग पचास साल के ऊपर। लेकिन सड़क पर खुलते छज्जे पर तरतीब से रखे गमलों के हरे—पीले रंग और उनमें छोटे—छोटे पौधों में खुलते और खिलते खुशबुओं के फूल और किनारे पर रखे बड़े गमले से निकली गहरे हरे रंग की लचकदार बेल जिसने आगे और आगे बढ़कर छज्जे को आधे से ज्यादा ढाँक लिया था, सरपट चाल छत की ओर भागती उसकी नसों की चमकीली चमक आज भी इस कदर याद है जैसे कोई सा मौसम हो, आस्मान में घटाटोप बादलों के बीच रह—रह कर कांपती बिजली की उजली रेखायें कभी