कहानी मंजिल आर.एन. सुनगरया, झटका लगा !!! मालूम हुआ कि मेरी सगाई कर दी गई है। ‘’किससे ?’’ ‘’ना मालूम......।‘’ मेरी सम्पूर्ण चेतना इस एक शब्द ‘सगाई’ पर आकर अटक गई। दिमाग सुन्न सा हो गया, कुछ सोचते नहीं बन रहा था, कुछ बोलना या करना तो बहुत दूर की बात है। चाह कर भी विरोध कर पाना असम्भव हो रहा था। अपने आप की निर्बलता, लाचारी, निरीहता व बैचारगी पर मन ही मन कुड़कुड़ा रहा था। और अन्त में मन मसोस कर रह