मेला

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अब उसने मेलों में जाने से ही तौबा कर ली थी। शहर में लगने वाले मेले और प्रदर्शनियाँ जैसे उसे मुँह निढ़ाते है। वो अक्सर ऐसे मेलों और प्रदर्शनियों के बाहर ही गुब्बारे बेचा करता है। इस गुब्बारे वाले का नाम तो संतोष है लेकिन गुब्बारे बेचने के कारण नाम तो गुम ही है गया, अब वो गुब्बारे वाला है। शहर में जहाॅ भी भीड़भाड़ हो उसे अपने गुब्बारे बिकने की उम्मीद होती है बस वहीं वो गुब्बारे बेचने लगता है।