कंचन दी

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कंचन दी ’’डायरी....? यह किसकी डायरी है और मेरी किताबों में कहाँ से आई ?’’ उस अनजानी डायरी को देखकर राधिका ने अपने मन में कहा और अपने दिमाग पर जोर देकर उस डायरी के बारे में सोचने लगी।....जल्दी ही उसे याद आ गया। याद आते ही वह बुदबुदायी, ’’ओह तो अब समझ में आया बच्चू मुझसे क्यों टकराया था ? ......बेटा, तू अपने आपको समझता क्या है ? बेटा, तू अगर खुद को चालाकी का बाप समझता है, तो मैं भी चालाकी में तेरी नानी हूँ। तू ने सोचा कि मेरी किताबों के साथ तेरी डायरी आ जायेगी, तो