कम्मो डार्लिंग

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कम्मो डार्लिंग ‘‘नीतेश !...’’ चिर-परिचित आवाज को सुनकर नीतेश के कदम जहां-के-तहां स्थिर हो गये। पीछे घूमकर देखा, तो आश्चर्य से आँखें खुली-की-खुली रह गयीं। ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो नीतेश!...? ...मुझे यहां देखकर हैरानी हो रही है...? ....अच्छा यह बताओ कि मुम्बई कब आए..?’’ प्रत्युत्तर में नीतेश कुछ न कहकर चुपचाप आगे बढ़ गया। वह भी उसके साथ चलते हुए बोली, ‘‘नीतेश! ...अर्से से दिल पर एक भारी बोझ लेकर जी रही थी, कई बार सोचा भी कि तुमसे मिलूं और मन की बात कहकर दिल का बोझ हल्का कर लूं, मगर कभी भी तुम्हारे सामने आने की हिम्मत