खिचड़ी खा (व्यंग्य) 

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खिचड़ी खा (व्यंग्य) अब सब कुछ खिचड़ी सा हो गया है याने यह समझना मुस्किल है कि कब आप समाचार देख रहे हैं और कब विज्ञापन । यह समझना भी कठिन हो गया है कि कब आप आश्वासन सुन रहे है और कब जुमले । ऐसे समय में जब चावल और दाल को अलग - अलग करना कठिन हो जाए तब खिचड़ी का महत्व बढ़ जाता है । वैसे आज -कल बाजार में सब्जी तरकारी की बढ़ी हुई कीमत के कारण भी खिचड़ी की पूछ - परख बढ़ गई है ।