असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 14

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14 व्यवस्था कैसी भी हो। प्रजातन्त्र हो। राजशाही हो। तानाशाही हो। सैनिक शासन हो। स्वेच्छाचारिता हमेशा स्वतन्त्रता पर हावी हो जाती है। सामान्तवादी संस्कार समाज मंे समान रूप से उपस्थित रहते है। कामरेड हो या कांग्रेसी कामरेड हो या केसरिया कामरेड या रूसी कामरेड या चीनी कामरेड या स्थानीय कामरेड सब व्यवस्था के सामने बौने हो जाते है। सब व्यवस्था रूपी कामधेनु को दुहने मंे लग जाते है। राजनीति मंे किसकी चण्डी मंे किसका हाथ, हमाम मंे सब नंगे। हमाम भी नंगा। स्थानीय नेताजी का भी छोटा, मोटा दरबार उनके दीवान-ए-आम मंे लगता था। दीवाने-आम के पास ही एक छोटे