शामियाना

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कहानी- शामियाना"रिश्तों की समझ नही है तुम्हें या रिश्तों की माँग से अनभिज्ञ हो तुम, उठा लेते हो बीच में अपनेपन की खुशबूदार अनुभूति जो पहले ही पीछे छूट चुकी है या पाट दी गयी है अपने नवीन आयामों के दायरों में। सरपट दौड़ती जिन्दगी की पटरी पर तुम यूँ ही मुँह बाये खड़े रहोगे कब तक? जो महकते थे जिनकी भीनी सुगन्ध से अन्तस सरोवार हो जाता था अब कृत्रिम भाव भंगिमाओं से चटख बस समाप्ति की आतुरता में दिखते हैं। यहाँ प्रेम का अस्तित्व तुम ढूँढोगे कब तक? प्रेम अहसास है अनुभूति है जो हाथ से हाथ तक