सुलोचना - 3

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भाग-३ एम.के. जब-तब उसकी तारीफ़ करके उसके मन को गुदगुदा देता। वह भी शाम को क्या स्पेशल बनाए यही सोचने में दिन बिता देती। कुछ न कुछ ख़ास वह परोस ही देती जिसकी तारीफ़ एम.के.दिल खोल के करता। उसे लगता उसका बनाना सार्थक हो गया। अब अपने वस्त्र विन्यास के वक्त वह ध्यान रखती थी कि शाम को उसे लाल या पीले रंग की ही साड़ी पहननी है।वह भी पतले जार्जेट या शिफ़ान की। बस एक दिन बातों-बातों में ही तो कह दिया था चाय की टेबल पर एम.के.ने उसकी सास से- “मामी आप मुझे शुरू से पीली शिफ़ान में