सुलोचना - 10 - अंतिम भाग

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भाग-१० उपसंहार- सराहना जीवन का अभिन्न अंग है।ये सच है की निंदक नियरे रखना चाहिए किंतु ऐसा भी न हो कि निंदा उपेक्षा में बदल जाए। ऐसा जब भी होता है तो या तो विद्रोह होता है या गुमराह हो कर व्यक्ति भटक जाता है।या फिर कभी वह आत्महत्या तो कभी कोई एम.के.जैसा कोई कदम उठ जाते हैं। जैसे स्वाति की एक बूँद के लिए चातक टकटकी लगाए रहता है वैसे ही मतवाली नारी भी अपने प्रिय से प्रशंसा सुनने को आतुर रहती है। यही तो था सुलोचना के जीवन का सत्य। अभाव में कटा जीवन का एक लम्बा वक्त