सरहद - 2

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2 अकेले पाठषाला जाना किस कदर डरावना था- जंगली जानवरों का खतरा, गाड़-गदेरों का बरसात में उफान, ऊपरी बलाओं का अंदेषा और सबसे ज्यादा डर मनुश्य नाम के प्राणी का, जो छोटी बच्चियों को भी मादा से ज्यादा कुछ नहीं मानते थे, पर ऐसा बहुत कम होता था, पहाड़ में बलात्कार नहीं सुनाई देता था या तो किसी की हिम्मत नहीं रही या स्त्री लाज षर्म के मारे चुप लगा गई। मैं भी पाठषाला जाने के लिये तैयार नहीं हुई तो माँ छोड़ने आई। माँ भारती की टांग खटिया के पाये पर बाँध कर मेरे साथ आने लगी। उस तरफ