चिता की आग

  • 4.4k
  • 1.1k

आंटी को पिछली बार अंकल के चौथे पे देखा था। जाने के समय जब मैंने हाथ जोड़कर उनसे विदा ली तो कहने लगीं,”तुम्हारे अंकल भी चले गए रेनू के पास ...” और अपनी चिरपरिचित उदासी में खो गईं। आंटी पिछले बीस वर्षों में नहीं बदली थीं या शायद उस से पहले भी मैंने उन्हें ऐसा ही देखा था। भारी कद -काठी,गोल चेहरा,होठों पे चिपकी एक हल्की मुस्कान। सादगी से पूर्ण व्यक्तित्व व्यवहार में शांत और ठहराव, ये ठहराव और मुखमंडल पर हल्की मुस्कान घर के सभी सदस्यों में था। उनकी मुस्कान गम और खुशी दोनों वक्तों में उतनी ही रहती