क्यों लिखूं....?

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क्यों लिखूं....? आपका ये नाचीज कभी-कभार अपने मन की बात लिखकर आप तक पहुंचा कर अपने मन के बोझ को कम करता रहता है, इस लिखने के चक्कर में कभी प्रशंसा मिली तो कभी आलोचना, कभी कोई पीठ थपथपा गया तो कभी कोई धमकी दे गया । लिखने का चक्कर ऐसा लगा कि कुछ मेरे पात्र रूपी वास्तविक लोग मुझे लठ्ठ लेकर ढूंढ रहे है तो कुछ लोग मेरे पात्रों के रूप में स्वयं को देखकर भी गद-गद है । हमारे रशीद भाईजान तो दाना-पानी लेकर चढ़े दौड़ते है, वे आज मिल गये बाजार में